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अंत

है कौन जो इस वसुधा पर रहा
है कौन नही जो इसमें क्षीण हुआ
हर दिव्य पुरुष गत हुआ यहाँ
विलुप्त हुआ सब ज्ञान यहां
कटक,अरि सब पौरुष मनु का
हुआ ध्वंस सब लौकिक सुख का
अब जाने का समय है आया
क्यों वसुधा पर रहेगा ज्यादा
बोझ बड़ा ने जन्तु लोग पर
रख विराम अपने चित्त विपल पर
काल का सिर्फ रंग है बदला
प्रकृति ने पुनः अपना द्वार है खोला
है कौन जो इस वसुधा पर रहा
है कौन नही जो इसमें क्षीण हुआ
-विजय


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