सूकून और जिंदगी के बीच चल रहा हूँ मैं
इन रास्तों पर पैरों के निशां अब नहीं मिलते
सूखी डालियाँ और झड़ते पत्ते।
वीरां हुए घोंसलों से चल रहा हूँ मै अब
सूकून और जिंदगी के बीच चल रहा हूँ मै अब
मिलते हैं निशां कुछ रेंगते, सूखे कीड़ो के
इन रास्तों पर पैरों के निशां अब नहीं मिलते
ढल रहा है सूरज उड़ रही है धूल मेरी तरफ
ढकने को एक बार फिर निशां मेरे पैरों के
ये रास्ते बड़े अजनबी से हैं
इन रास्तों पे अब पैरों के निशां नहीं मिलते
@विजय