चंद्रबदनी कथा चन्द्रकूट पर्वत की
January 17, 2019
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हजारों देवालयों की इस देवभूमि में कई इसे स्थान भी हैं जहाँ पर लोकश्रुतियों के अनुसार देवी देवता स्वयम्भू पिंड रूप में विद्यमान रहते हैं. एसा ही एक स्थान चन्द्रबदनी मन्दिर है. टिहरी जिले में स्थित इस मन्दिर में आस्था और भौगोलिक सुन्दरता का अनोखा समागम देखने को मिलता है. अलकनंदा नदी के दाहिनी दिशा में बसा यह मन्दिर चन्द्र्कूट पर्वत पर 8000 फीट पर स्थित है. पंच प्रयागों में से एक देवप्रयाग से 33 किलोमीटर की सडक यात्रा और 1 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर इस मन्दिर तक पंहुचा जा सकता है. लोकश्रुतियों के अनुसार शिव शंकर की पत्नी माता सती के पिता के कनखल में हो रहे यज्ञ का जब शिव सती को न्यौता ना मिला तो इसे अपने पति का अपमान मानकर माता सती अपने पिता के यज्ञ में पंहुची. दक्ष प्रजापति द्वारा शिव के अपमान किए जाने पर सती से सहन ना हुआ तो उन्होंने यज्ञ में स्व आहुति दे दी. शिव ने सती वियोग में दक्ष का यज्ञ का नाश कर दिया और सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे. शिव के वियोग को देखकर श्री नारायण ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दी. सुदर्शन चक्र के वार से सती के मृत शरीर के ५२ भाग धरती पर विभिन्न स्थानों पर गिरे. उनमे से एक अंश “ माँ सती का बदन ” चन्द्र्कूट पर्वत पर गिरा जिससे इस शक्तिपीठ का नाम चन्द्रबदनी पड़ा. मन्दिर के सम्बन्ध में एक कथा एसी भी है कि माता सती के बदन के यहाँ गिरने के पश्चात भगवान शिव इस स्थान पर रहने लगे. कुछ समय पश्चात माँ आदिशक्ति ने भगवान शिव को उनके देवत्व का अहसास कराया और वहां से जाने को कहा, शिव के उस स्थान से जाने के पश्चात जो कोई भी माता सती के शरीर के उस भाग के दर्शन करता तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो जाता. कलयुग में आदि गुरु शन्कराचार्य जी जब उत्तर भारत में पंहुचे तो चन्द्र्कूट पर्वत पर गिरे माता के बदन के दर्शन किए तो अपनी मृत्यु की इच्छा जताई. तो माँ आदिशक्ति ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अभी आपके अनेकों उद्देश्य अधूरे हैं, उनको पूर्ण किया जाना आवश्यक है. सो शन्कराचार्य जी ने, जिस पत्थर पर माता का अंश गिरा था उसे अंश सहित उल्टा करके उसके नीचे पर्दा लगाकर मन्दिर निर्माण किया और उस पत्थर के ठीक नीचे श्री यंत्र की स्थापना की, जिससे जन सामान्य यहाँ दर्शन कर पूजा अर्चना कर सके. कहा जाता है कि इसी स्थान पर शन्कराचार्य जी ने देवी से क्षमा याचना हेतु न मंत्रम नो यन्त्र्म नामक देवी स्तुति की रचना भी की थी.
प्रेषक-प्रभात ड्यूंडी
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