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किस्से-कहानियां अच्छी हो तो यह नहीं कि वो खत्म नहीं होंगी भाग 1

 उस रात मैं यह सुनते सुनते ही सो गया कि उसने उसे मार डाला जी हां यही वह आखिरी शब्द थे जो मुझे याद हैं उस कहानी के जो मैंने सुनी थी 15 साल पहले अपने दादा जी से उस कड़ाके की ठंड की रात उनकी बगल पर लेट कर|

                                                    कहानियां ही थी जो मुझे अकेलेपन का एहसास न होने देती चाहे डरावनी हो या प्रेरणादायक शायद जिसकी जगह अब इंटरनेट मोबाइल ने ले ली|

      अच्छा बुरा मैंने उन्हें सीखा और सीखता गया, वो मुझे आज भी याद दिलाते हैं उस चांदनी रात की जो मैंने बताई थी उन सभी के बीच जो  दूर है मुझसे, मेंढक की टर्टल व उल्लू की आवाज जो रात को रूह ले जाती थी अपने साथ न जाने कहां, जाता हूं आज अंधेरों में उन गदेरों में जहां जाने से तांडव करती थी हड्डियां मेरे शरीर की

                    आज फिर रहती है वह बूढ़ी वहां जो ले जाती थी बच्चों को अपने साथ|

           मैंने सुनी है वह कहानी वो सात भाई एक बहन की, सुना है गांव का वह भूत मैंने, सुना है जीतू बग्ड़वाल मैंने, देखा बुरांश का फूलता फूल मैंने, पिया है गदेरों का ठंडा पानी मैंने, पढ़ा हूं उस धार की स्कूल मैंने,  चोरी की है मैंने संतरे-ककड़ी की|

         हां मैं नायक हूं उस कहानी का जो बीत गया है मेरे बचपन के साथ,  गया हूं जंगल मैं पूरी बरसात अपने दो जोड़ी बैलों के साथ जो शायद आज जिंदा भी हो या ना......जाता हूं जब वापस अपने बचपन में तो देखता हूँ सूख चुका है वह गदेरा जिस का ठंडा पानी मैंने कभी पिया था,सूख चुका वह पेड़ जिसके कभी मैंने आडू संतरे खाए थे, बंद पड़ चुकी है वह स्कूल धार की जिस में कभी मैंने पढ़ा था, हो चुकी है बूढ़ी दादाजी व उनकी कहानियां जो मैंने सुनी थी अपनी कहानी के बीच में वे कहानियां तो पूरी हो चुकी पर मेरी कहानी का अंत बाकी है अब शायद मैं वह कहानियां सुनाऊं जो मुझे सुनाई थी मेरे पूर्वजों ने कहानी-किस्से अच्छे हो तो यह नहीं कि खत्म ना हो.................



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